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आमेर का किला (दूरदर्शन के लिए)


पत्थर भी गर बोलते, तो शायद अपनी कहानी खुद बयां करते...
ये सच है की पत्थरों की ज़बान नहीं होती,
लेकिन एक सच ये भी है... कि हर वो अहसास... 
जो इंसान अपनी जुबां से बयां न कर पाया...
पत्थरों से कहलवा दिया...

पत्थरों कि शक्ल में नज़र आती इस शायरी... यानी हिन्दोस्तान कि इन ऐतिहासिक इमारतों ने हिन्दोस्तान के इतिहास को पत्थरों कि शक्ल में अब तक जिंदा रखा है.


परिवर्तन प्रकृति का नियम है. जैसे जैसे समय बीतता है, बड़े से बड़े शहर भी अवशेषों में परिवर्तित होने लगते हैं. इमारतें खण्डहर हो जाती हैं. मज़बूत इमारतें श्रेष्ठ खंडहरों कि तरह अपने समय की स्थापत्य और निर्माण कला को एक विरासत की भांति अगले ज़माने तक ले जाती हैं. ऐसा ही एक शहर, पिंक सिटी... यानी की जयपुर  भारतीय निर्माण और स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है. भारतीय नगर निर्माण कला के इतिहास में पुरातन तथा नूतन को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कड़ी है यह जयपुर.

आधुनिक जयपुर के निर्माण से पहले कछवाहा शासकों की राजधानी आमेर था जो एक किलायुक्त बंद नगर था. कछवाहों से भी पहले आमेर सुसावत मीनो का राज्य हुआ करता था. बताया जाता है की दसवीं सदी के आसपास दूल्हाराय कछवाहा ने मीणों को परस्त केर यहाँ अपना राज्य स्थापित कर लिया.

वर्तमान जयपुर नगर से लगभग सात मील उत्तर-पूर्व में स्थित इस विशाल दुर्ग की नींव १५९२ के करीब राजा मानसिंग ने राखी थी. राजा मानसिंग मुग़ल शासक अकबर का एक सेनापति था. ....


क्रमश: